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जो माने न धर्म-जात, जिनसे है गीता-कुरान-जिनकी नहीं कोई जुबान,जिन्हे कहते है लोग अल्लाह और राम

ATTITUDE creating the DIFFERENCE
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UNIVERSAL TRUTH- universal truths, universal facts are immaterial of everything.
यथार्थ – universal truth – अर्थात एक ऐसा सत्य जो सर्वथा सत्य हो, हर जगह हर वक़्त.
यह सत्य जगह बदलने के साथ बदलता नहीं है. जो हिंदुस्तानी के लिए होगा, वही पाकिस्तानी के लिए भी होगा, वही बांग्लादेशी, नेपाली, जापानी, ऑस्ट्रेलियाई और इंग्लंडवासी के लिए भी होगा.
न ही ये सत्य भाषा के साथ बदलता है. जो संस्कृतभाषी के लिए होगा वही उर्दूभाषी के लिए होगा, जो हिंदी बोलने वाले क लिए होगा, वही इंग्लिश बोलने वाले के लिए होगा, और वही एक तमिल और कन्नड़ भाषी के लिए होगा.
और इनकी क्या बात करे सार्वभौमिक सत्य तो जो इंसान के लिए होगा वही जानवर के लिए भी होगा, इस धरती की हर वास्तु के लिए वही होगा. उसके लिए इंसान या जानवर सारहीन है. अर्थात जीव इंसान है या जानवर उसे यदि इस बात से भी फ़र्क़ नहीं पड़ता, तो फिर सोचो उसपर इंसान के धर्म से कोई फ़र्क़ पड़ता होगा. यथार्थ तो जो हिन्दू के लिए होगा ,वही मुस्लमान के लिए होगा, वही जैन के लिए होगा, वही बौद्ध के लिए होगा, वही एक सिक्ख और एक ईसाई के लिए होगा.

और यदि भगवान का अस्तित्व एक यथार्थ है,एक universal truth है, तो यक़ीनन ही वह भी हिन्दू , मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध सबके लिए एक ही होगा, अलग-अलग नहीं.
उसके लिए फिर इसी तरह सभी धर्मो के नाम सारहीन होंगे.
ये दुनिया यदि ईश्वर चलाता है, तो इंसानो में भेद-भाव थोड़े ही करता है. हिन्दू के लिए सूरज पूर्व से तो मुसलमान के लिए पश्चिम से थोड़े ही उगाता है. हर किसी के लिए पूरब से ही सूरज उगाता है. जब कोई विपदा आती है, कही सुनामी तो कही बाढ़ आती है, तो छांट-छांट के थोड़े ही लोगो पे बरसती है, की सिक्ख पर कम और ईसाई पर ज़्यादा बरसेगी, मौत के घाट सिर्फ जैनो को उतारेगी, और सिर्फ बौद्धो को ही अपंग बनाएगी. वो तो सब के लिए एक ही जैसी आती है. बारिश होती है , हवा चलती है, तो सभी के लिए एक ही जैसी चलती है. ईश्वर तो इंसान में कभी भेद-भाव नहीं करता. जो देता है सबको बराबर ही देता है.

भगवन तो इंसान को नहीं बांटता, परन्तु इंसान की औकात तो देखो, भगवन को बांटने का माद्दा रखता है. जिसने इंसान को बनाया इंसान ने उसी के टुकड़े कर दिए, धर्म बना के.

धर्म तो इंसान को जीने का ढंग सीखने के लिए है, सही और गलत की समझ विकसित करने के लिए है. विपरीत परिस्थितियों में सही रस्ते पर चलने की हिम्मत देने के लिए है. धर्म ये थोड़े ही कहता है की तुम भगवन के नाम पे आपस में झगड़ो.
हर धर्म के अपने rules है. कोई बहुत strict है, तो कोई बहुत liberal. पर एक बात sure है, की इन सब में से सत्य तो कोई एक ही है, यथार्थ(absolute truth) तो कोई एक ही है.
if you agree with the above point, comment on what is your opinion about absolute truth on which everyone will agree.
just like if god is someone who created universe, then GOD must know about each & everything in the universe, after all God has made it. क्या उन्हे हर बात का ज्ञान होगा ? यदि वो सर्वग्य है, अपितू सब जानते है, हर वक्त को जानते है, तो उन्हे इंसान द्वारा जानी जाने वाली हर वस्तु, हर बात, हर कोन्सेप्ट हर theory को जानते होंगे , हर तरह की समस्या और उसका समाधान जानते होंगे. चाहे फ़िर वो समस्या भविश्य मे आने वाली हो या वर्तमान मे किसी भी इंसान के साथ हो या भूतकाल मे किसी के साथ घटीत हुई हो- चाहे हिंदू के साथ घटी हो या मुसलमान के साथ, जैन, बौद्ध , सिक्ख या ईसाई के साथ घटी हो.
लोग कहते है गलती इंसान से ही होती है , तो मतलब भगवान से नही होती? अगर भगवान से भी गलती हो सकती है तो इंसान और भगवान मे अंतर क्या रह गया?
यदि क्रोधी व्यक्ति पागल के समान होता है, तो क्या भगवान पागल हो सकते है.
अगर माफ़ी बड़प्पन की निशानी है , और ज़ाहिर सी बात है की अगर भगवान सबके पिता समान है तो वै सबसे बडे है, तो फ़िर किसी को सज़ा मिलनी ही नही चाहिये. सबको माफ़ी मिल जानी चाहिये.
भगवान को किसी चीज़ की ज़रूरत होगी या उन्हे भी अपनी ज़रूरते पुरी करने के लिये इंसान की तरह काम करके कमाना पड़ता होगा?
भगवान के पास धन-सम्पदा होगी या नही होगी, यदि होगी तो चोरी होने क डर नही होता होगा. लोग कहते है जिसके पास बहुत सारा धन होता है , उसे मन की शांति नही मिलति , तो क्या भगवान इतनी सारी सम्पदा के साथ चिंतित रहते होंगे या गरिबी मे शांति के साथ रहते होंगे, या फ़िर उन्होने इंसान की भाँति नौकर रख रखे होंगे जो उनकी धन-सम्पदा की हर वक्त रक्षा करते होंगे.
क्या भगवान नौकर या सेवक रख सकते है. क्या ऊनकी ऐसी इच्छा होती होगी की कोई ऊनके पैर दबाए उनकी सेवा चाकरी मे हर वक्त लगा रहे, उसी से खुश रहेंगे वो . या उन्हे चाहिये की तुम एक अच्छे इंसान बन जाओ तो वो खुश रहेंगे. वै हमसे अकारण ही कुछ देते होंगे या किसी से खुश होने पर उसे कुछ देते होंगे. यदि खुश होने पर देते होंगे तो खुश कैसे होते होंगे.
चलो एक दफ़ा माता-पिता से तुलना करके भी देख लेते है. माता-पिता महंगे तुम्हारे तोहफो से खुश होते है या तुम्हारे ज़्यादा उन्नति करने पर खुश होते है . तो भगवान महँगी उपाहरो से खुश होते होंगे या तुम्हारे एक अच्छा इंसान बनने पर खुश होते होंगे.
जैसे नेता से या किसी इंसान से काम करवाना हो तो उसे तोहफ़े या पैसे देने से काम हो जाता है . बस सामने वाले की हैसियत देखके पैसा देना पड़ता है. यदि भगवान के पास अपार सम्पती है, जितनी किसी इंसान के पास नही, तो उन्हे उतना महँगा तोहफ़ा देना पड़ता होगा अपनी बात मनवाने के लिये. पर पैसे या तोहफ़े लेके काम करवाना तो रिश्वतखोरी मे आता है , तो क्या भगवान रिश्वत लेते होंगे.
मै पुछ रही हू बता नही रही हू .
कभी माता-पिता को रिश्वत लेकर काम करते देखा है ? तो भगवान तो उनसे भी महान होंगे, अगर माता-पिता उन्नति करने पर खुश होते है तो भगवान एक अच्छा इंसान बनने पर सबसे ज़्यादा खुश नही होते होंगे.
अच्छा ये बताओ तुम्हे क्या लगता है भगवान न्याय कैसे करते होंगे. क्या उनसे इसमे कभी गलती हो सकती है? होनी तो नही चाहिये अगर वो सर्वग्य है और सब जानते है , तो उन्हे तो बिना बताए भी सही और गलत का पता होगा. जब भगवान हिसाब करते होंगे या कहो की हमे judge करते होंगे की कोन ज़्यादा अच्छा है और कौन ज़्यादा बुरा तो कैसे करते होंगे बुद्धिमानी (brain intelligence) के आधार पर या मन की सच्चाई के आधार पर .
अगर भगवान यथार्थ है , इंसान और जानवर के लिये एक से है , एक सा प्रेम और एक सी भावना रखते होंगे तो इंसान द्वारा जानवर की कुर्बानी उन्हे कितना खुश करेगी. या भगवान इंसान को ज़्यादा और जानवर को कम पसंद करते है .
REMEMBER UNIVERSAL TRUTHS ARE INDEPENDENT OF WHETHER THE LIVING BEING IS A HUMAN OR ANIMAL OR PLANT .
अगर फ़िर भी तुम्हे लगता है की भगवान इंसान को ज़्यादा और जानवर को कम स्नेह करते है तो ये बताओ की ऐसी कोनसी अच्छाई इंसान मे है जो उसे ज़्यादा पसंद किया जाना चाहिये.
मेरे हिसाब से तो सर्फ दिमाग ही बचा है इंसान मे जानवर से बेहतर. आपके हिसाब से क्या? और भगवान तो शायद मन की सच्चाई को आधार बनाते होंगे हिसाब का. आपको क्या लगता है.

I would like to know your opinion before completing.
…….to be continued

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